अब तेरा कर्ज उतार पाऊं तो,
अब तेरी ममता का फर्ज अदा कर पाऊं तो,
अब तेरा अहसान मेरे खून के कतरे-कतरे में,
अब मैं अपना खून बहा पाऊं तो,
अब मेरी खुशी में तेरी खुशी है,
अब मैं तुझे कैसे खुश रख पाऊं तो,
अब तूने संवारा और सम्भाला है मुझे,
अब मर कर भी यह कर्ज़ अदा कर पाऊं तो,
( कवि : राजू वर्मा )
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