एक नारी की खातिर,
महाभारत रची गई।
एक नारी की खातिर।
लंका ढां दी गई।
द्रौपदी ने,
अंधे को अंधा न कहा होता।
तो इतना बड़ा,
नर संहार न होता।
सूपड़खां ने,
छल न किया होता।
तो वंश का
सूपड़ा साफ ना होता।
आज फिर,
इतिहास दोहराया गया।
एक नारी को,
फिर छला गया।
राजधानी में,
काले नागों द्वारा डसा गया।
उठ खड़ी वह,
रणचंडी बन गई।
तलवार लिए हाथ में,
युद्ध में अकेली ही चली गई।
अब जागो ,
न्याय के साथ।
अन्याय के विरुद्ध,
कदम से कदम मिलाओ।
बज उठा,
शंख रणभेरी का।
तीर चढ़ाओ प्रत्यंचा पर
विजय पताका फैराओ।