इक ख्वाब करके याद यूं, चकित मैं होना चाहता हूं,
ये छल अचेतना का भ्रम, क्यों भ्रम में खोना चाहता हूं ।। १ ।।
आनंद ढूंढता हुआ, यूं आनंद के परे हुआ ,
चंचल सा मैं, मेरा ये मन, तटस्थ फिर हृदय हुआ।
फिर देखकर के एक , रूप के लुभावने को,
आजीवन बस मैं यूं ही, रूपमग्न होना चाहता हूं
इक ख्वाब करके याद यूं, चकित मैं होना चाहता हूं,
ये छल अचेतना का भ्रम, क्यों भ्रम में खोना चाहता हूं ।। २ ।।
मैं दुत्कारी भौतिकता का, अब संशय का साथी हूं,
अब खोजी कोई रहा नहीं , मैं तो उस स्वप्न का वासी हूं।
वियोग के विनाश को और प्रेम की एक श्वास को,
तद् स्वप्न लीन होना चाहता हूं,
इक ख्वाब करके याद यूं, चकित मैं होना चाहता हूं,
ये छल अचेतना का भ्रम, क्यों भ्रम में खोना चाहता हूं ।। ३ ।।
कोई न उसे असत् कहो, हे संसारियों कुछ रहम करो,
वही तो एक मात्र सत् लगा, मुझे मेरा जगत् लगा।
जीवन मेरा चरणों में उसके दान करने के लिए,
मैं जी भर के सोना चाहता हूं,
इक ख्वाब करके याद यूं, चकित मैं होना चाहता हूं,
ये छल अचेतना का भ्रम, क्यों भ्रम में खोना चाहता हूं ।। ४ ।।
क्यों स्वप्न वह अब आता नहीं, संयोग हो पाता नहीं,
ये कष्ट मैं नहीं सह पा रहा, क्या उनसे भी सहा जाता नहीं।
जिस लोक में वो लुप्त है,
उसी लोक का होना चाहता हूं
इक ख्वाब करके याद यूं, चकित मैं होना चाहता हूं,
ये छल अचेतना का भ्रम, क्यों भ्रम में खोना चाहता हूं ।। ५ ।।