फितरत है इन दुराचारियों की,
चेहरे पर लगाते हैं मुखौटा।
मासूम सा चेहरा देता है दिखाई,
छुपा कर कहता है असलियत।
मैं साथ हूं तुम्हारे,
होंगे तेरे भी वारे न्यारे।
मगर पुरानी फायलों से,
धूल झाड़ कर देखा।
मालूम हुआ कि,
पुराने हैं भ्रष्टाचारी।
नगद नारायण के लिए,
फाइलों में मुर्दा बना देता है।
जरूरत पड़े तो,
घर भी जला देता है।
पैसा उसका ईमान,
उसका भगवान है।
अंकी, इंकी, डंकी लाल,
इंसान के रूप में शैतान है।
भ्रष्टाचार के तीन दलाल,
खाकर पैसा सरकारी, हो रहे मालामाल।
फैला रखा है भ्रष्टाचार का ऐसा जाल,
बजा रहे हैं रोज एक नई ताल।