गंध पसीने की
समा गई सांसों में
लिपटने से देह में उसके,
ये आंखें
भीगी और बरसीं
किसी बादल के टुकड़े सी
नेह में उसके,
हजारों फूल की खुशबू
उड़ी बागों से,बस गई
रोम में उसके।
वो टूट कर बिखरी
हवा के साथ फिर सिमटी
लिपटकर जिस्म से अपने
उतर गई सांस में उसके।
दिनेश चौहान