माना जो जैसा है, वैसा ही रहेगा बदल नहीं सकता,
टूट जाएगा पत्थर पर कभी भी पिघल नहीं सकता।
न हो कद्र जब दिल में उसके फिर ये रिश्ता कैसा,
ये संबंधों का दीप है, समझौते से जल नहीं सकता।
लंगड़ाते हुए ही सही पर चलना अपने बलबूते पर,
जब कोई बोझ बन जाए, तो दूर चल नहीं सकता।
ऐसा नहीं तुम्हें महसूस ही न हो उसके बदलने की,
खुद ही छलते हैं खुद को, दूसरा छल नहीं सकता।
लगा के उम्मीद घायल हुआ है बस मेरा अन्तर्मन,
उदासियों के बादल में सूरज कभी ढल नहीं सकता।
🖊️सुभाष कुमार यादव

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




