कापीराइट गीत
खुली आंख से देखो सपने रोज सुबह और शाम
मंजिल पर ही दम लेना तू फिर करना आराम
जाग मुसाफ़िर मंजिल तेरी कब से तुझे बुलाए
पहले चुन अपनी मंजिल फिर आगे बढ़ता जाए
बातें उससे करते रहना तू रोज सुबह और शाम
मंजिल पर ही ....................
बन्द आंख से रातों में देखे तुमने जितने सपने
सुबह होते ही वो सपने होते नहीं कभी अपने
चाहे उनके लिए करो तुम अपनी नींद हराम
मंजिल पर ही ........................
एक फैसले एक सोच से बदलेगा तेरा जीवन
छोटी-छोटी खुशियों से ये महकेगा तेरा जीवन
देखेगी ये दुनियां सारी जब बोलेगा तेरा काम
मंजिल पर ही .........................
कहता है ये यादव आज फैसला कर लो तुम
घर अपने तुम जाओ या खुशियों से भर लो दामन
मंजिल होगी कदमों में करोगे गर मेहनत से काम
मंजिल पर ही .......................
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है