एक अर्सा हो गया उसे देखे हुए।
फिर भी ज़िन्दा हूँ दुआ देते हुए।।
जिसके लिए जिन्दगी क्रम लगी।
बरक्कत के लिए सज़ा देते हुए।।
पौधे को पानी की जरूरत रहती।
हरियाली फैलती छाया देते हुए।।
समझते थे उसे उम्र भर का साथी।
गुजर गए 'उपदेश' वफ़ा करते हुए।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद