यह मन मानता ही नहीं है कि ..
समझ समझना नहीं चाहती
दिल मानना नहीं चाहता
भावनाएँ देखना नहीं चाहतीं
ख्याल भी ज़हन में आना ही नहीं चाहता
कि तुम अब बड़ी हो गई हो ..
क्या करें ?
आज भी जब आँखें बंद करते हैं
तुम्हारे बचपन की झलक ही सामने आती है
तुम्हारी अठखेलियाँ,हर पल मस्ती में रहना
घर की दीवारों पर तुम्हारा चित्रकारी करना
बैड,सोफे पर कभी भी सीधे रास्ते न चढ़ना
घण्टों कैमरे के सामने तोतला कर कविताएँ बोलना
घर के गेट पर खड़े होकर सब आने जाने वालों को आवाज़ लगाते रहना
जब कोई याद पुरानी हुई ही नहीं
तो कैसे कह दें
कि तुम अब बड़ी हो गई हो..
बेशक तुम्हारा कद काठी,रंग रूप बदल गया
पढ़ाई लिखाई डिग्री में बदल गई
तुम्हारा दुनिया देखने का नज़रिया बदल गया
तुम समझदारी वाली बातें करने लगी
छोटी सी बेटी जो टॉय कार चलाती थी
वो आज हमें अपनी कार में घुमाने लगी
फिर भी मम्मी को “मी” “मी” बोलना
पापा को पप्पा बोलना
तुम्हें हमारी नज़र में बड़ा होने ही नहीं देता
क्या करें ?
कोई भी गवाई देना ही नहीं चाहता
कि तुम अब बड़ी हो गई हो..
वन्दना सूद