एक सोच ने
उदास लबों को
रंगत दे दी
वरना मुस्कुराना
तो नहीं था,
भीनी सुगंध ने
राह उपवन का बताया
वरना उस ओर
जाना तो नहीं था,
नीची रखी नजर
अपनी आन के लिए
वरना सिर अपना
झुकाना तो नहीं था,
दफन किस्सों में
यह किस्सा अज़ीज़ था
वरना यह भी कभी
सुनाना तो नहीं था,
बहुत तारीफें
तेरे शहर की सुनी
तो आ गये
वरना बेवजह यहां
आना तो नहीं था,
धीमी रोशनी थी
और चेहरे पर नकाब
उम्मीद है जिंदगी ने
पहचाना तो नहीं था,
साजिशे अपनों की
देखीं तो चौंके
वरना अब भी हमें
घबराना तो नहीं था,
शून्य होने लगे तो
सहसा संभले
वरना इस पहेली को
अब भी
सुलझाना तो नहीं था,
ज़िक्र हर लम्हा
एक बात का किया
यह खुद को बहलाने का
बहाना तो नहीं था,
खुद गिराना
फिर सहारा देना
धोखा है
हर तरफ
यह बताना तो नहीं था।
----चरनजीत कौर