अब सुब्ह उठते हीं तुम याद नहीं आते हो
बहुत ग़ौर करने पर धुंधले-धुंधले से छाते हो
सच बताओ क्या तुम भी भूल गए मुझको
या मेरी यादों में अब भी ख़ुद को घिरा पाते हो
दरमियांँ तक़रार के इश्क़ कहांँ टिक पाता है
बेहतर है जुदा रहना समझ क्यूंँ नहीं पाते हो
ज़मीं और आसमां क्या कभी मिल पाये हैं
जानते हो फिर भी क्यूंँ ख़ुद को भरमाते हो

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




