किस तरह जलील होकर भी वाष्पित नही मन।
किसी दूसरे की पीड़ा देखकर द्रवित हुआ मन।।
तन की भूख मिटती ही नही कितने उपाय किए।
जाने क्यों चकाचौंध से थक गया पीड़ित हैं मन।।
तरह तरह के व्यंजन खाकर जब भरा नहीं पेट।
तब एक भूखे को रोटी खिलाकर तृप्त हुआ मन।।
अब जो टीस है मेरे भीतर बेजुबानों के दर्द की है।
क्या है इलाज 'उपदेश' जिससे भरेगा व्यथित मन।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद