वो बाग में आई,
डालियां लहराने लगी
जुल्फें बिखर गई थी
कलियां खिल्ली उड़ानें लगी
देख चिड़चिड़ी आंखों को
दो जुल्फों के बीच में
खिलती फूलों को
बेबस हंसी इन लगी
मिजाज हुस्न का देख
भौंरे चुपचाप हो गये
बाग से जैसे कोई
नयी हवा आने लगी।
मनोज कुमार सोनवानी, समदिल
पोड़ी, पाली कोरबा छत्तीसगढ़।
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