©हमारा भारत किसी की जागीर नहीं है।
यह हर उस नागरिक का है जो ईमानदारी, समझ और संवेदनशीलता से जीना चाहता है।
अब समय है — टुकड़ों में बँटने से नहीं, पूरे होकर सोचने का।
✍️ भारत में हर विभाजन के पीछे एक भूख है — संसाधनों की भूख
– ललित दाधीच
जब भी कोई वर्ग, कोई सत्ता, या कोई संस्था किसी और के साथ अन्याय करती है — उसकी जड़ में सिर्फ एक बात होती है: संसाधनों पर नियंत्रण की लालसा।
भारत पर हुए विदेशी आक्रमण, आज की राजनीतिक उठा-पटक, भाषायी झगड़े, धार्मिक ध्रुवीकरण, और यहां तक कि हमारी संस्कृति पर हो रहा बाज़ारी हमला — सबका कारण वही है: किसी न किसी को सब कुछ चाहिए, दूसरों को कुछ भी नहीं।
भाषा का नाम लेकर जनता को बाँटा जा रहा है, जबकि जरूरत भाषा की गरिमा को बचाने की है।
शिक्षा और पर्यावरण जैसे गंभीर विभाग अयोग्य हाथों में हैं, निर्णय उन्हीं के पास हैं जिनका वहां कोई अनुभव नहीं।
वनरोपण जनता करे, जंगल उद्योगों को मिले, यह कैसा विकास?
सिनेमा के नाम पर अश्लीलता परोसी जा रही है, संस्कृति को बाजार का चारा बनाया जा रहा है।
महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं, लेकिन संवैधानिक पदों पर बैठे लोग चुप हैं।
महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं, लेकिन संवैधानिक पदों पर बैठे लोग चुप हैं।
मणिपुर जलता रहा, मगर सत्ताधारी विदेशों में भाषण देते रहे।
भारत की बुराई विदेशी मंचों पर, और विदेशी प्रशंसा भारत में — यह दोहरापन कैसा?
🎯 असली समस्या:
यह सब इसलिए है क्योंकि देश को न्याय से नहीं, लूट से चलाने की सोच गहरी होती जा रही है।
जिसे जो नहीं मिला, उसे कुचल दिया गया — कभी धर्म के नाम पर, कभी भाषा के, कभी कपड़ों के, और कभी सत्ता के नाम पर।
समाधान की बात:
हमें चाहिए:
संसाधनों का समान और न्यायपूर्ण बंटवारा।
योग्यता को सम्मान, न कि चाटुकारिता को।
संवेदना को प्राथमिकता, न कि प्रचार को।
संस्कृति को बाजार से बचाना, और विकास को विनाश से रोकना।
- ललित दाधीच।।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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