बदल गए हैं आजकल दोस्ती के आयाम
दिस्ती की आड़ में शहर दर शहर घूम
रहें शैतान।
जो दोस्ती की राह को होने नहीं देते आसान।
दोस्त हीं आजकल लूट रहें हैं दस्ती का सामान।
बनके मेहरबां साहिबां कदरदान सब लूट
लेते हैं।
बदल गए हैं आजकल दोस्ती के आयाम
आजकल दोस्ती के बदले में दोस्त कुछ ना कुछ ज़रूर लेते हैं।
दोस्ती तो कलयुग में तिजारत बन गई है।
दोस्ती के नाम पर दोस्तों की शहादत हो रही है।
दोस्ती के आड़ में लोग .. ...
लोगों की घर गृहस्थी चुरा रहें हैं।
दोस्त के घर संपत्ति परिवार पर बुरी नज़र
रख रहें हैं।
दोस्ती के नाम पर रेप मर्डर ठगी कर रहें हैं।
और दिखावे के लिए फ्रैंडशिप डे मना रहें हैं
बस दिखावे के लिए फ्रैंडशिप डे मना रहे हैं..