शायद किसी को वो कर रही याद थी,
गुज़री हुई ही सही पर वो कश्मकश भरी रात थी।
ख़ामोश बैठी थी वो इस - क़दर,
जैसे कोई ना कोई तो बात थी।
कोशिश कर रही थी वो उसकी सारी यादों को
समेटने की,
कोशिश कर रही थी वो उसकी सभी बातों को
एक डायरी में लिखने की।
वहाॅं सिर्फ़ वो,उसकी कलम और उसकी डायरी थी,
लग रहा था ये सब देख कि
मानो कोशिश कर रही थी वो अपनी तन्हाई को
दूर करने की।
उसकी बातों को, उन मुलाक़ातों को वो
याद कर रही थी,
उन यादों के सहारे वो अपनी तन्हाई को दूर कर
रही थी।
वो छोड़ गया था उसे,तन्हा कर गया था उसे,
अब वो अकेली थी इसीलिए वो उसके साथ
बिताए लम्हों को याद कर जी रही थी।
✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️