मेरा मर्ज़ क्या था कि, दवा से अच्छा हुआ नहीं..
वो देखने आए, मगर लबों से निकली दुआ नहीं..। 
वो एहसानमंद थे, हमारे कि गर्ज़मन्द थे क्या कहें..
जुबां से कहा नहीं, और चेहरे पे कभी दिखा नहीं..। 
हमने महफ़िल में कई दफ़ा, मुहब्बत के कलाम कहे..
उनकी निगाहें झुकी रही, दिल में भी तुफां कोई उठा नहीं..।
माना कि मिज़ान नहीं मिलती, मेरी शायरी में कभी..
मगर लोग कहते हैं कि अच्छा नहीं, तो कुछ बुरा नहीं..। 
उनका इंतेज़ार भी, कुछ इस शिद्दत से किया हमने..
शाम तो वक़्त पर आई मगर, दिन देर तक ढला नहीं..। 
 
पवन कुमार "क्षितिज"
        
    
The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




        
        
        
        
        
        
        
        