रूठे गये है बदरा
तितली से लेकर पंख उधार
उड़ जाऊंगी में बादलों के पार
कुशल क्षेम पूछकर उसका
तपती धरती का हाल बताऊंगी
बातें करूंगी कुछ देर इधर-उधर
बरखा में हो गयी बहुत देर
अनबन हो गयी हमारी तुम्हारी
क्या जो तुम रूठे बैठे हो
भूल जाओ अब पुरानी बातें
हम नहीं करेंगे प्रकृति से खेल
उससे रखेंगे सदा मेल
अब तो बोलो मीठे बोल
थोड़ा चमको थोड़ा गरजो
कभी धीमा कभी जोर से बरसों
पशु पक्षी सब आकुल है
बेतहाशा प्यासे अरु आतुर है
इनका दर्द तो तुम समझो
प्यारे बदरा अब तो बरसों
✍️#अर्पिता पांडेय