कभी खुशी तो कभी ग़म है,
मेरी ज़िंदगी में ग़म ज़्यादा
तो खुशी कम से कम है।
समझ नहीं आ रहा
मुझे क्या हो रहा है ?
जो भी हो रहा है
किस वजह से हो रहा है ?
बरसों बरस बीत गए
अपनी बीमारियों की जड़ ढूंढते - ढूंढते,
बीमारियां बढ़ती जा रही है
पर जड़ मिल नहीं पा रही है।
ना बीमारियों का नाम मिल रहा है,
ना ही उनका इलाज़ मिल रहा है।
पर हाॅं,
दर्द पर दर्द बेहिसाब मिल रहा है।
🖋️ रीना कुमारी प्रजापत 🖋️