"ग़ज़ल"
अपने ही जब बेगाने निकले!
हम ग़ैरों को अपनाने निकले!!
नई दुनिया थी फिर भी यारों!
नए रिश्तों के बहाने निकले!!
नया दर्द था टीस नई थी!
देखा तो ज़ख़्म पुराने निकले!!
ऑंखों से टपके अश्क के मोती!
दिल से यादों के ख़ज़ाने निकले!!
दिल ने भी दिया 'परवेज़' दिलासा!
जब हम दिल को समझाने निकले!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad