किसी के राज़ खोलना, ठीक नहीं,
सच जाने बिना बोलना ठीक नहीं।
जो कह दो सामने तो सुधार करूँ,
यूँ पीठ के पीछे बोलना ठीक नहीं।
जो कुछ कहना मेरे सामने कहना,
मेरी बात उससे बोलना ठीक नहीं।
कब, क्या, कहाँ, और कैसे बोलना,
नहीं है सलीका, बोलना ठीक नहीं।
एक से दूसरे में जाते बिगड़ जाती,
दूसरों से यूँ बात बोलना ठीक नहीं।
करो मेरी निंदा सामने, तब ठीक है,
पीठ के पीछे झूठ बोलना ठीक नहीं।
क्षमता नहीं अपनी बुराई सुनने की,
तो किसी को बुरा बोलना ठीक नहीं।
🖊️सुभाष कुमार यादव