दो अक्षरों का छोटा सा नाम,
पर इसके आगे सब रिश्ते हुए नाकाम।
ना खून का रिश्ता, ना कोई रिवाज,
फिर भी हर मोड़ पर बना ये सबसे खास।
बचपन में जब कुछ समझ ना आता,
हर खेल में बस दोस्त ही भाता।
टिफ़िन बाँटते कहाँ थे हम यार,
वो तो बैग से ही निकाल लेते थे हर बार।
कभी चॉकलेट छुपा ली जाती थी मज़ाक में,
कभी पूरी दोस्ती सिमट जाती थी एक नाश्ते के पाक में।
मम्मी ने जो भेजा वो सबका हो गया,
हर निवाला यारी का तोहफ़ा बन गया।
कभी किसी दोस्त की किसी से हुई तकरार,
तो बाकी सब हो गए उसके लिए तैयार।
कहते — "तु रह, अब हम बात करेंगे",
और सामने वाले को सीधे समझा देंगे।
अगर किसी एक को बाहर कर दिया मास्टर जी ने,
तो दोस्त भी निकल लिए जैसे शान से जीने।
कहते — "अकेले क्यों जाएगा तू बाहर भाई?"
बिन कहे ही साथ हो जाते, निभाते यारी की लड़ाई।
लंच ब्रेक में वो बेंच पर बैठकर ठहाके,
बिना वजह हँसी, बिना वजह इशारे।
स्कूल बस में पिछली सीट का राज,
जहाँ खिलते थे मस्ती के अंदाज़।
वो खिड़की से हाथ निकालकर हवा को थामना,
और हँसते हुए हर बात को कहानी बनाना।
कक्षा बंक कर कैंटीन तक जाना,
और ₹10 में चार का खाना खाना।
कभी किसी को हो गया था क्रश,
तो सारे दोस्त बन गए थे लव-गुरु फटाफट।
कोई चिढ़ाता, कोई समझाता,
और फिर सब मिलकर मनाते — यही तो था अपना नाता।
ज़िंदगी बदल गई, चेहरे बदल गए,
पर दिल में वो पल आज भी जिंदा हैं।
आज भी अगर फोन पर मिल जाए वो नाम,
तो हर काम छोड़ हँसी बाँट लेता है इंसान।
कभी-कभी WhatsApp पर एक पुरानी फोटो आ जाती है,
और घंटों तक वही पुरानी बातें चल जाती हैं।
‘याद है जब...’ से जो शुरुआत होती है,
वो दिल को फिर उसी बचपन की गलियों में ले जाती है।
तो चलो...
आज एक काम करते हैं दिल से,
थोड़ा वक़्त निकालते हैं फिर से।
जाओ, खोजो अपने पुराने यारों को,
जिन्हें वक़्त ने कहीं बिछड़ा दिया है,
एक बार फिर से उनसे बात करो,
क्या पता वही दोस्त आज भी तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हो..... 💛

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




