नशा में बेसुध हुजूर को तारे दिखे।
होश जब आया सड़क किनारे दिखे।।
नशा से तौबा कर उठ के चल दिया।
चल न पाया एक कदम नजारे दिखे।।
बाते बडी बडी उस हाल में कर लेता।
जिस हाल में गैर 'उपदेश' हारे दिखे।।
गुमान मर जाता नशा उतरने के संग।
तलब जाग जाने पर गम सारे दिखे।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद