उमर भर दिल में कैद रहने दो हसीं है
हिरासत तो तुम्हारी बहुत दिलनशी है
ढेरों आवाज फीके साज के भी अब
असल दिल की तरन्नुम ही मौशिकी है
कहा किसने मुहब्बत में है मिलन ही
फना हो जा तो ये जुदाई आशिक़ी है
बना सूरते रंग सजना संवरना क्या
सँवरना तो मोहब्बत में ये सादगी है
हुआ इनकार पर दिल कत्ल उनका
वहीं ये इकरार भी तो खुदकशी है
नशा जो उन आंखों का चढ़ा मुझपर
ये नजरें जाम है या कोई मयकशी है
अधूरी ही रहने दो कुछ ख्वाहिश लवी
मुकम्मल हो जाना भी तो इक कमी है
----डॉ पल्लवी गुंजन