शतरंज जैसी चाल उलझती हुई मिले
हर शख्स की नकाब उतरती हुई मिली।।
दोस्तों की भीड़ में अपना नहीं अजीज
जो भी मिली निगाह बदलती हुई मिली।।
मंजिल करीब आकर भी दूर हो गई
पैरों तले जमीन ही दरकती हुई मिली।।
यह वाकया हुआ क्यों अपने साथ ही
जितनी छुपाई बात उभरती हुई मिली।।
रातों की चांदनी क्या कर गई कमाल
पाषाण की शिला भी उबलती हुईं मिली।।
तपती हुई दुपहरी में झुलसा किए सभी
पर रात हर उदास ठिठरती हुई मिली।।
कलियों के बाग में थी खिलने बस कमीं
"दास" हर निगाह महकती हुई मिली।।