तेरी दूरी में भी मैंने तुझे समझा है,
हर ख़ामोशी को तुझ जैसा ही पढ़ा है।
तू जो गया तो तुझको रोका नहीं मैंने,
पर हर क़दम पे तेरा नाम ही रखा है।
कितनी ही बार तू मेरी सोच से गुज़रा,
मैंने तुझे बिना पुकारे ही छुआ है।
तू लौटे या न लौटे, ये फ़ैसला तेरा,
मैंने तो हर राह पर दीपक रखा है।
तू मौन था, मगर दिल सब कुछ कहता था,
मैंने हर एक सिसकी में तेरा लहजा पहचाना है।
जो बात तू कह न सका, वो मेरी रूह ने सुनी,
मैंने तेरे दर्द को अपने जैसा समझा है।