समेटकर कुछ बूंदों को,
सौंपी थी दरिया को,
लहरों ने मिलकर,
भंवर बना दिया
कुछ बीज बोए थे, कांटों के,
शायद, अंजाने में,
वक्त ने सींच सींच कर,
खंजर बना दिया
लकीरें, हाथों की,
घिस गयी हों, भले ही
श्रम, संगति और दुआओं ने
मुकद्दर बना दिया।
सर्वाधिकार अधीन है