जीवन में कभी मोड़ भी ऐसे,
....काँटों पर जीवन हो जैसे,
अग्नि परीक्षा क्या ये मेरी,
....संघर्षों के खेल हो जेसे(2),
कर्तव्यों को निभाऊं केसे,
....पथ से विमुख हो जाऊं केसे(2)
जीवन में कभी मोड़ भी ऐसे,
....काँटों पर जीवन हो जैसे(2)
कभी सूरज सा रोशन ये जीवन,
....अब दुख का अंधियारा जैसे,
सोचू क्या पाया ये जीवन,
....कर्मो से नाता हो जेसे(2),
बेसक रास्ता रोके अब परबत,
....लड़ना है दशरथ मांझी जैसे,
जीवन में कभी मोड़ भी ऐसे,
....काँटों पर जीवन हो जैसे(2)
कवि राजू वर्मा
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