सब मर्ज़ दे रहे, चारा–गर ना भेजे कोए..
अपने–अपने दर्द के, खुद ही आंसू रोए..।
बात बात पर बेचैनी, उथल पुथल सी सांसें..
जाने किन बातों में खोकर, पल छिन खोए..।
नींद अधूरी रह गई, बाकी रही ना यामिनी..
अब ना पूरे होंगे कभी, सपने जो थे संजोए..।
अब ना कोई दुख करे, और ना करे पछतावा..
हमें वैसा ही तो फल मिला, जैसे बीज थे बोए..।
वो क्यूं बात बात पर दे रहे, सफाई हर बात की..
अपने किए क्या होगा, जो होना था वो ही होय..।