तकदीर
डॉ एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
मौत ने कहकहे कर लगाये बहुत,
पर जिंदगी मौन थी।
इन दोनों के बीच,
खड़ी वह कौन थी।
जो देख रही तमाशा,
किसकी तरफ ,आएगा पाशा।
तकदीर का खेल था निराला,
जिंदगी के गले में पहना दी माला।
मौत ने फिर अट्टहास लगाया,
क्षण भर की तो बात है।
फिर स्याह काली रात है,
अजब है दास्तां,
जिंदगी और मौत की।
कहें क्या ऐ"विख्यात"
बात फिर तकदीर की।