तमाम उलझनों में उलझी है मेरी ज़िंदगी
एक तरफ़ अपने ख़्वाब है एक तरफ़ अपनों के ख़्वाब है,
बस इसी कश्मकश में पिघल रही है ज़िंदगी।
तमाम उलझनों में उलझी है मेरी ज़िंदगी...
इसी उलझन में उलझती जा रही है ज़िंदगी
कि एक तरफ़ करूं अपनी परवाह तो अपनों
के साथ हो जाए दगा,
एक तरफ़ अपनों की करूं परवाह तो खुद के संग
कर लूं लापरवाही
इसी उलझन में उलझती जा रही है ज़िंदगी।
तमाम उलझनों में उलझी है मेरी ज़िंदगी...
इसी परेशानी में परेशान हैं ज़िंदगी
कि ये कैसा दस्तूर है आखिर क्यों जो चाहे हम
वो हमारे अपने चाहते नहीं,
क्यों जो चाहे हमारे अपने वो हमे पसंद नहीं
इसी परेशानी में परेशान है ज़िंदगी।
तमाम उलझनों में उलझी है मेरी ज़िंदगी...
इसी बेबसी में बेबस है ज़िंदगी
खुद के ख़्वाब को दफ़्न कर
अपनों के ख़्वाबों को पूरा किया,
खुद मिट गई मेरी ज़िंदगी और
अपनों की ज़िंदगी को बना दिया
इसी बेबसी में बेबस है ज़िंदगी।
तमाम उलझनों में उलझी है मेरी ज़िंदगी...
✍️✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️✍️
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




