जीत न मिलने से भी दुखदायी वह सोच होती है ।
जो जीत न होने की आशंका से ही अपनी हार मान लेती है ॥
वन्दना सूद
कोई पल ऐसा भी आता है
जब ज़िन्दगी के तूफ़ानों से थक कर दिमाग़ कह देता है
बस बहुत हुआ,
अब हिम्मत नहीं आगे बढ़ने की !!
तब यह मन की इच्छाशक्ति ही है
जो फिर उठाती है और कहती है
हार निश्चित भी हो जाए ,
फिर भी जीतने की आशा नहीं छोड़नी चाहिए
क्योंकि हर अन्तिम पड़ाव की आख़िरी छलाँग का जुनून ही तुम्हारी जीत और हार तय करता है ।
वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है