पसीनों से निकलती गर्म
सुगंधित रोटी शायद
सबसे अच्छी रचनाएँ बनी है
जून के महीने में
प्रसन्न है आदमी कहीं
थोड़ा उदास भी
सूरज के प्याले को पकड़
खौलते धारा की चुस्की लेते हुए
विशाल संसार के घोंसले में
बह रही है मधु संगीत की नदी
गरम मदिरा सा उबलता जीवन
देख ठंडा महसूस कर रहा
फूलों में खिलते प्राणों की लाली
बड़बड़ाते हुए थके कदम
घर को बढ़ जाते हैं
आसमां तकता है
पृथ्वी की उष्णता को
तभी कुछ मुस्कुराती बूंदें
चूमती हैं पत्तों, जमीं और
हृदय के अधर
ज्वलंत आत्मा के सीने से
निकलता है सर्द स्वर
सुरक्षित है धूप
पवित्र शीत की गोद में......
_ वंदना अग्रवाल 'निराली'