तुमसे बेहतर कोई
मिलता ही नहीं
कोई दिखता ही नहीं
इन आंखों को
कोई जंचता ही नहीं
कोई ठहरता ही नहीं
पलभर को
निगाह में कभी
तुमसे फारिग कभी
ये दिल होता ही नहीं
उठती ही नहीं निगाह
किसी और
शख्स की तरफ
पलकों का परदा
खुद ही गिरा देती हैं
आख़िर..
कैसे ले कोई
तुम्हारी जगह,
जब तुमने कोई
जगह छोड़ी ही न हो
सुनो
तुम कुछ इस तरह
ठहरे हो मुझमें
जैसे आसमां में
टिमटिमाते वो तारे
कभी नही भूलते
जगह अपनी
जैसे नदी में
बहता पानी
भले ही सूख
जाए मगर
उसके निशान
बाकी
रह ही जाते हैं
जैसे दुआ
दिखती नहीं मगर
दिल में ठहरी
रहती है
पूरी होने की
तमन्ना लिए
किताबों मे लिखे
वो शब्द
जो धूमिल हो
जायेंगे मगर
अपनी जगह
नहीं छोड़ते
जैसे फूलों में
बसी होती है
उनकी बेहतरीन
खुशबू
ठीक वैसे ही
तुम ठहरे हो
मेरे अंतर्मन में
एक मीठा सुखद
एहसास बनकर।
----डॉ पल्लवी गुंजन
**डॉ पल्लवी गुंजन जी के फेसबुक वाल से साभार