कमाई गई यादें सुबह से शाम आ रहीं।
आगे बढ़ने में मुश्किले तमाम आ रहीं।।
उनकी जिंदगी के संग गुजारे गये पल।
कुछ यादें अमन की बेलगाम आ रहीं।।
इतना अच्छा वक्त बेरोकटोक गुजारा।
सरेआम मिलने जुलने में शर्म आ रहीं।।
कुछ तो है जरूर उनमें बयां न कर सकूँ।
बिना तार के पैगाम तन्हाई बढ़ा रहीं।।
ताल्लुकात ने अंजाम देखा नही 'उपदेश'।
बिना उनकी मर्जी से अभिराम आ रहीं।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद