"ग़ज़ल"
किस किस ने किस किस को किस किस की पार्टी में किस किया!
मैं भीड़ में भी था तन्हा तन्हा बस तुम्ही को मिस किया!!
इतना ग़ुस्सा मुझी से क्यूॅं है कुछ तो बोलो ये राज़ खोलो!
मैं ने दिस कहा तो दैट किया और दैट कहा तो दिस किया!!
हूर समझ कर जिस को चाहा वो तो यारों नागन निकली!
जब गले से लगाना चाहा बल खा के उस ने हिस किया!!
रब ने तुझे बनाया होगा मौसम-ए-बहार में ही!
जिस्म बनाया शाख़-ए-गुल और ऑंखों को नर्गिस किया!!
क्या मिला ऐ मालिक! हुस्न वालों की तरफ़दारी कर के!
दौलत-ए-हुस्न से नवाज़ा उन को और हमें मुफ़्लिस किया!!
माना मिरा दिल तोड़ के वो चली गई मुॅंह मोड़ के!
उस की यादों ने आ कर मिरी तन्हाई को मजलिस किया!!
'परवेज़' अब तो ख़ुद से भी मिलने की फ़ुर्सत है कहाॅं!
प्यार किया रात भर उसे फिर सारा दिन ऑफ़िस किया!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad