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कविता की खुँटी

        

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कविता की खुँटी

                    

मैं फिर से जाग भी सकता हूँ - अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'

कुछ आस सी बाकी रहती है,
कुछ सांस सी बाकी रहती है,
जब चाँद छुप जाता है कहीं,
कुछ प्यास सी बाकी रहती है,

अब आस रहे या सांस रहे,
चाँद छुपे पर प्यास रहे,
कुछ अर्थ ना बाकी रहता है,
जो दुनिया बेमानी कहती है,

कुछ अर्थ रहे फिर या न रहे,
दुनिया बेमानी कहे तो कहे,
मैं फिर से जाग भी सकता हूँ,
गर वापस आने को वो कहती है,

मैं फिर से जाग करू भी क्या?,
क्यों वापस आने वो बोले,
छोड़ो मलाल को जाने दो,
वो क्या कहते हैं फर्क ही क्या,
जो कहती हैं सो कहती हैं ।

___अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (10)

+

फ़िज़ा said

वाह!! बहुत ही लाज़वाब अभिव्यक्ति!! शानदार रचना!!

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय फ़िज़ा Mam, जी को सादर प्रणाम एवं समीक्षा के लिए हृदय से आभार

Ankush Gupta said

Waah Kya Kahne Hain Ashok Ji, bahut khoob.

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय अंकुश गुप्ता सर जी को सादर प्रणाम एवं समीक्षा के लिए हृदय से आभार

शिवचरण दास said

बहुत सुन्दर अशोक जी सोकर ख़ुद जागने की कला बड़ी दुर्लभ होती है. ....बहुत खूब

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय दास सर जी, आपको सादर प्रणाम पहुंचे

ANIL KUMAR SHARMA said

क्या खूब लिखा है अशोक जी, बहुत सुन्दर

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय शर्मा जी आपका बहुत बहुत आभार एवं सादर प्रणाम

आलोक कुमार गुप्ता said

बहुत खूब श्री अशोक जी भावपूर्ण रचना

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय अलोक सर जी आपका बहुत बहुत आभार एवं सादर प्रणाम

वन्दना सूद said

बहुत खूब अशोक जी
उलझी हुई राहों को सुलझाने की कोशिशों के बीच का भाव बहुत उत्तम है 👌👌👏👏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीया Mam, आपकी समीक्षा मेरे लिए बहुत मायने रखती है,आपका बहुत बहुत आभार एवं सादर प्रणाम

पवन कुमार "क्षितिज" said

बेहतरीन लिख अपने..आपकी कविता की गहराई समझने को मेरे जैसे अल्पज्ञ को 2 बार पढ़ना पड़ता है

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय पवन सर जी आप जैसे अनुभवी रचनाकार का बड़प्पन है इस तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त करना, शायद मेरी रचना में ही कमी होती है जो उसको समझने के लिए आपको २ बार पढ़ना पड़ता है, आगे से शब्दों एवं भाषा पर और अधिक कार्य करते हुए रचना लिखने की कोशिश करूँगा जिससे रचना का भावार्थ आसानी से समझ में आसके, आपके इस बड़पन के लिए एवं आशीर्वाद के लिए बहुत कृतज्ञ एवं आभारी हूँ, आपको सादर प्रणाम

सुभाष कुमार यादव said

बेहतरीन।👌👌

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय यादव सर जी आपका बहुत बहुत आभार एवं सादर प्रणाम

श्रेयसी said

जब चाँद छुप जाता है कहीं कुछ प्यास सी.... क्या कहने बहुत सुंदर बहुत ख़ूब लाज़वाब रचना। आपको सादर प्रणाम अशोक जी 🙏🙏

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

वाह अशोक जी, एक एक पंक्ति में गहरी बातें छिपी हुई है। मैं फिर से जाग भी सकता हूं, स्वयं को जीवन की मुख्य धारा में लाने की चाहत। छोड़ो मलाल को जाने दो, वाह बहुत खूब लिखा है आपने। खूबसूरत रचनाकार का खूबसूरत अभिनंदन।

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