कुछ आस सी बाकी रहती है,
कुछ सांस सी बाकी रहती है,
जब चाँद छुप जाता है कहीं,
कुछ प्यास सी बाकी रहती है,
अब आस रहे या सांस रहे,
चाँद छुपे पर प्यास रहे,
कुछ अर्थ ना बाकी रहता है,
जो दुनिया बेमानी कहती है,
कुछ अर्थ रहे फिर या न रहे,
दुनिया बेमानी कहे तो कहे,
मैं फिर से जाग भी सकता हूँ,
गर वापस आने को वो कहती है,
मैं फिर से जाग करू भी क्या?,
क्यों वापस आने वो बोले,
छोड़ो मलाल को जाने दो,
वो क्या कहते हैं फर्क ही क्या,
जो कहती हैं सो कहती हैं ।
___अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'