मै बहुत अकेली हूं
अपनी उलझनों में घिरी हूं
बताऊं किसे?
दर्द तो बहुत है दिल में
सुनाऊं किसे?
जब जाना ही था छोड़कर
तो कली सा नाज़ुक बनाया क्यों मुझे?
आखिर जाना ही था तो
गले से लगाया क्यों न मुझे?
जाते बखत ये तक न समझा
मेरी मुस्कान तले दर्द को कौन समझेगा?
मेरी मासूमियत में ढंकी शरारतों को कौन बुझेगा?
मेरी नन्ही चालाकियों को कौन सुलझाएगा?
सोचा तो मैने भी न था
की दिन एक ऐसा आयेगा
जिसे अपने से ज्यादा अपना माना
वही अलविदा कह जायेगा
तेरे न होने से ये चमक भी अंधियारी लगती है
खुशियों भरी जिंदगी भी खाली सी लगती है
पर कुछ नही
सीख लूंगी अकेलेपन में घर बनाना
उलझनों में रहना
और दिल में दर्द लेकर जीना।।