अब उनसे शिकवा है, ना गिला है कोई..
बस आंसुओं का ही, सिलसिला है कोई..।
ना बहारें मेहरबाँ, ना बाग़बाँ का है करम..
फिर किसकी सदा से, गुल खिला है कोई..।
अंधेरों में सितारे भी, राह दिखलाते हैं कभी..
फ़िर किस वज़ह से, भटका हुआ ये काफ़िला है कोई..।
इन दिनों दिल हर बात की, जिद्द सी करता है यारो..
लगता है अपना ही, साथ इसके मुब्तिला है कोई..
अब कहते हैं लोग कि, ज़रा सम्भल कर रह उनसे..
देखता हूं इन दिनों क्या मुझसे , ज्यादा घुलामिला है कोई..।
पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




