सफर जितना भी रहा उसके साथ मगर।
यादे छोड़कर गई साथ-साथ डगर-डगर।।
किस तरह उम्मीदो की समाधि बनाई मैंने।
कह न सका कुछ करता रहा अगर-मगर।।
माँगे हुए लम्हे है और वही जाम-ए-शराब।
भूली हुई बाते 'उपदेश' हो रही आर-पार।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद