शोहरत
तोड़ रहे थे फूल तुम यों ही जाते-जाते,
खुश्बू देते रहे वो दुनिया से जाते-जाते।
तूफान कैसे भी आते रहे राह में मगर,
चट्टान मन में भी हो राह से जाते-जाते।
तुमने बसाई दुनिया जल्दबाजी में मगर,
हमने शोहरत कमाई यों ही जाते-जाते।
खाकर फेंको नहीं बीज यों डस्टबिन में,
दिखते हैं पेड़ उन्हीं के राह में जाते-जाते।
आज तक गुजरे उसी गली से कई बार,
देखा नहीं उसका घर राह से जाते-जाते।
गम ऐसा दिया कि भूल न पाए जिंदगी में,
गम का मरहम बनाया यों ही जाते-जाते।
अंधेरा बहुत घना था फिर भी चलते रहे
उजाला तो यों ही दे गई रात जाते-जाते।
प्रा. धन्यकुमार जिनपाल बिराजदार, सोलापुर, महाराष्ट्र
9423330737