ग़म भी निकम्मे निकले दो दिन न टिके।
मोहब्बत की तासीर से कमजोर न टिके।।
बड़ी चर्चा चली हालात पर हँसना आया।
हँस हँसकर जीने वाली की हँसी न रुके।।
हर बात अतीत से जोड़ देने की रिवायत।
वर्तमान की अनुकंपा में भविष्य न रुके।।
जिम्मेदारियों ने जकड़ा अपनी बाहों में।
तिलमिलाने लगे दोस्त उस जगह न रुके।।
जिस पड़ाव पर हमदर्द की कमी दिखी।
वहाँ भी 'उपदेश' मदद के काम न रुके।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद