आसान नहीं है
कुछ अच्छा कर जाना।
विश्व पटल पर यारों
छा जाना।
सोसल मीडिया के ज़माने में
सबको अपना अपना
रंग ज़माना है।
एक लाईक के चक्कर में
क्या से क्या कर रहा हर
कोई इसका दीवाना है।
कुछ अच्छा कुछ नया परोसना
सबके बस की बात नहीं।
सस्ती लोकप्रियता के फ़िराक में
खेल रहें जज़्बातों के कार्ड सभी।
अभिव्यक्ति के नाम पर
खिलवाड़ हो रहा है।
एक वर्ग समाज का देश से हीं
लड़ रहा है।
बड़ा दर्द होता है जब अपना कोई
जयचंद निकलता है।
संस्कार समाज बात व्यवहार को
रख कर ताक
खुद के लोगों का हीं कत्ल करता है ।
ना जाने समय का सिपाही
क्या चाह कर रहा है...
ना जाने देश को क्यूं इतना
बदनाम कर रहा है...
ना जाने क्या चाह रहा है
ना जाने चाह क्या रहा है..
ना जाने चाह क्या रहा है..