शब्दों की ताक़तः भावनाओं का ख़्याल रखें
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शब्द केवल ध्वनि नहीं होते, वे आत्मा के दर्पण होते हैं। हमारे शब्द।हम यह भूल जाते हैं कि हमारी भाषा, हमारा लहजा, हमारे भीतर की सोच का प्रतिबिंब है। एक स्नेहभरी बात वर्षों बाद भी सुकून दे सकती है, जबकि कटुता से कही बात ताज़िंदगी टीस बनकर रह जाती है।
शब्द... ये केवल अक्षरों का मेल नहीं होते, बल्कि इंसान के भीतर छिपे भावों, विचारों और उसकी मानसिकता का आईना होते हैं। एक कोमल-सा वाक्य किसी टूटे हुए दिल को संबल दे सकता है, तो वहीं एक कठोर बात किसी के भीतर तूफ़ान उठा सकती है। इसी लिए कहा गया है- जुबान में मरहम भी है और ज़ख़्म भी। अब ये हमारे विवेक पर निर्भर करता है कि हम अपने शब्दों से किसी को जीवन दें या निराशा।
दुनिया में रिश्ते बनते-बिगड़ते रहते हैं, लोग आते हैं, चले जाते हैं - पर जो बात दिल में स्थायी रूप से बस जाती है, वह होती है किसी के बोलने का तरीक़ा, उनके शब्दों का चयन, और उनके पीछे की भावना।
एक स्नेहभरी बात वर्षों बाद भी दिल को सुकून देती है, जबकि घमंड या कटुता से कही गई बात दिल में टीस छोड़ जाती है।
हम अक्सर कहते हैं "दिल साफ़ होना चाहिए", लेकिन यह शुद्धता तब तक अधूरी है, जब तक वह हमारी भाषा में प्रकट नहीं होती। मधुरता, संवेदनशीलता और करुणा - यही वो तत्व हैं जो एक सामान्य व्यक्ति को आत्मीय और प्रिय बना देते है।
कुछ लोग यह कहकर अपनी कटु भाषा को सही ठहराते हैं कि "सच कड़वा होता है।" मगर वे भूल जाते हैं कि सच कहने की भी एक कलात्मकता होती है। अगर कोई सच किसी को तोड़ दे, उसे अपमानित कर दे या आत्मसम्मान को रौंद डाले, तो वह सिर्फ क्रूरता है, न कि ईमानदारी।
सच वही है जो सच्चाई के साथ-साथ सहानुभूति का भी पात्र हो।
हमारा हर दिन, हमारे जीवन की एक कहानी है। हम उस पर कैसी इबारतें लिखते हैं, यह हमारे अपने हाथ में होता है। हमारे शब्द उस स्याही की तरह हैं जिनसे या तो उम्मीद की रोशनी रची जा सकती है या निराशा का अंधकार। जब शब्द हमारे हृदय की गहराइयों से छनकर निकलते हैं, तब वे कुछ लोग यह कहकर अपनी कटु भाषा को सही ठहराते हैं कि "सच कड़वा होता है।" मगर वे भूल जाते हैं कि सच कहने की भी एक कलात्मकता होती है। अगर कोई सच किसी को तोड़ दे, उसे अपमानित कर दे या आत्मसम्मान को रौंद डाले, तो वह सिर्फ क्रूरता है, न कि ईमानदारी सच वही है जो सच्चाई के साथ-साथ सहानुभूति का भी पात्र हो।
हमारा हर दिन, हमारे जीवन की एक कहानी है। हम उस पर कैसी इबारतें लिखते हैं, यह हमारे अपने हाथ में होता है। हमारे शब्द उस स्याही की तरह हैं जिनसे या तो उम्मीद की रोशनी रची जा सकती है या निराशा का अंधकार। जब शब्द हमारे हृदय की गहराइयों से छनकर निकलते हैं, तब वे स्वाभाविक रूप से भावनाओं से भरे, कोमल और प्रेरणादायक होते हैं।
आज जब दुनिया में संवेदनाएं क्षीण होती जा रही हैं, जब लोग केवल अपने बारे में सोचने लगे हैं, तब अगर आप किसी के लिए स्नेह और करुणा का स्रोत बनें, तो यह न केवल दूसरों के लिए सुखद होगा, बल्कि आप खुद भी एक आंतरिक शांति का अनुभव करेंगे। खुद भी एक आंतरिक शांति का अनुभव करेंगे।
क्योंकि जब आप किसी और के ज़ख़्म पर मरहम लगाते हैं, तो अनजाने ही आप अपने भीतर के घावों को भी भरने लगते हैं।
इस तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में यदि आप कभी ठहरकर यह सोच लें कि
"क्या मेरे शब्द किसी के लिए आशा की किरण बन सकते हैं?"
"क्या मेरी बात किसी बुझी लौ को फिर से प्रज्वलित कर सकती है?"
तो यही सोच आपको एक बेहतर इंसान बना सकती है।
हमें केवल बोलना नहीं, बल्कि संवेदना के साथ बोलना सीखना होगा। बदले की भावना के स्थान पर क्षमा को अपनाना होगा। कठोर शब्दों के स्थान पर मधुरता को अपनाना होगा।
दूसरों में दोष ढूँढ़ने से पहले- खुद की आत्मा में झांकने की कोशिश करनी चाहिए। यही आत्ममंथन, आत्म-विकास का वास्तविक मार्ग है।
याद रखिए - शब्द उड़ जाते हैं, पर उनकी गूंज जीवन भर बनी रहती है।
आपके शब्द किसी की दुआ बन सकते हैं तो क्यों न हम अपने हर शब्द को एक प्रार्थना, एक साधना, एक सेवा की तरह प्रयोग करें?
जब भी बोलें या लिखें, दिल से सोचें, आत्मा से महसूस करें। यही वह क्षण होता है जब आप तय करते हैं कि "क्या आप किसी की आंखों के आँसुओं की वजह बनेंगे या उसके होंठों पर मुस्कान की?"
आपका एक शब्द किसी का जीवन बदल सकता है - तो उसे उपहार की तरह दीजिए, हथियार की तरह नहीं।
डॉ. फ़ौज़िया नसीम शाद

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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