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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

सौदा - नागार्जुन


चार बीड़ा पान थमाकर बोले मिस्टर ओसवाल :

बिज़नेस बिज़नेस है!

एमोशनल होने से चलता नहीं काम

जाइए, अभी आप कीजिए आराम...

घिसे हुए रिकार्ड की थर्राती ध्वनि में

बोला आख़िर मैं भी :

ठीक ही तो फ़रमाते हैं आप

मार्केट डल् है जेनरल बुक्स का

चारों ओर स्लंपिंग है; मगर! मगर, दो साल हो गए

बेटा जकड़ा है बोन-टीबी की गिरफ़्त में

पचास ठो रुपइया और दीजिएगा

बत्तीस ग्राम स्टप्टोमाइसिन कम नहीं होता है

जैसा मेरा वैसा आपका

लड़का ही तो ठहरा

एँ हें हें हें कृपा कीजिएगा

अबकी बचा लीजिएगा...एँ हें हें हें

पचास ठो रुपइया लौंडे के नाम पर!

ओफ़्फ़ो SSS ह!

—फुफ् फुफ् फुफकार उठे

प्रगतिशील पुस्तकों के पब्लिशर मिस्टर ओसवाल

नामी दुकान ‘किताब कुंज’ के कुंजीलाल

यहाँ तो ससुर मुश्किल है ऐसी कि...

और आप खाए जा रहे हैं माथा महाशय मंजुघोष!

इतना कहकर खटाक से सेठ ने

कैप्स्टन् का साबित पैकेट पटक दिया

झटके-से खुल गई स्वर्णिम चेन दामी रिस्टवाच की

प्रतिफलित हो उठी

सामने पड़े अति रुचिर पेपरवेट की पीठ पर

बढ़ गई मेरे दिल की धड़कन

अति चेतन मन से मैंने सोचा...

रूठ गए अन्नदाता! हाय रे विधाता!!

फिर मैं तपाक से उठा, ठुड्डी छू ली अपने सेठ की

बटोर कर साहस क्षण भर बाद बुदबुदाया :

अच्छा, जैसी हो आपकी मर्ज़ी!

पचास न सही पच्चीस या बीस

...इतना तो ज़रूर!

जिएगा तो गुन गायगा लौंडा हिं हिं हिं हिं, हुँ हुँ हुँ हुँ

रोग के रेत में लसका पड़ा है जीवन का जहाज़—

भन्नाकर बीच में ही बोले मिस्टर ओसवाल :

वाह भाई वाह! ख़ासी अच्छी कविता सुना गए आप तो!

थैंक्यू! थैंक्यू महाशय मंजुघोष!

लेकिन जनाब यह मत भूलिए कि डालमिया नहीं हूँ मैं,

अदना-सा बिज़नेसमैन हूँ

ख़ुशनसीब होता तो और कुछ करता

छाप-छाप कूड़ा भूखों न मरता

जितना कह गया, उतना ही दूँगा

चार सौ से ज़्यादा धेला भी नहीं

हो गर मंजूर तो देता हूँ चैक

वरना मैनस्कृप्ट वापस लीजिए

जाइए, ग़रीब पर रहम भी कीजिए

अपने उस सेठ का यह तेवर देखकर सचमुच मैं गया डर—

बिदक न जाएँ कहीं मिस्टर ओसवाल?

पांडुलिपि लेकर मैं क्या करूँगा?

दवाई का दाम कैसे मैं भरूँगा?

चार पैसे कम... चार पैसे ज़्यादा...

सौदा पटा लो बेटा मंजुघोष!

ले लो चैक, बैंक की राह लो

उतराए ख़ूब अब दुनिया की थाह लो

एग्रीमेंट पर किया साइन, कॉपीराइट बेच दी

(नाम था नॉवेल का ‘ठंडा-तूफ़ान’

छप के होंगे यही कोई डेढ़-एक सौ पेज

डबल क्राउन साइज के)

दस रोज़ सोचा, बीस रोज़ लिखा

महीने की मेहनत तीन सौ लाई!

क्या बुरा सौदा है?

जीते रहें हमारे श्रीमान् करुणानिधि ओसवाल

साहित्यकारों के दीनदयाल

प्रूफ़रीडरों के प्रणतपाल

नामी दूकान ‘किताब कुंज’ के कुंजीलाल

इनसे भागा कर जाऊँगा कहाँ मैं

गुन ही गाऊँगा, रहूँगा जहाँ मैं

वक़्त पर आते हैं काम

कवर पर छपने देते हैं नाम

मातम में—ख़ुशी में करते हैं याद

फुलाते रहते हैं देकर दाद

नई-नई ली है अभी ''हिंदुस्तान फ़ोर्टीन”

सो उसमें यदा-कदा साथ बिठाते हैं

पान खिलाते हैं, गोल्ड फ़्लैक पिलाते हैं

मंजुघोष प्यारे और क्या चाहिए बेटा तुमको???




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