गुलों को रोन्दनें वाले चमन की बात करते हैं
दिलों को तोड़ने वाले अमन की बात करते हैं
घर अपना रंगाते हैं सदा तितलियों के रंग से
परों को नोंचने वाले सनम की बात करते हैं
यही कातिल हमारे हैं यहां पे खून के प्यासे
जरा सी ठेस लगने से चुभन की बात करते हैं
उम्र सारी कटी है बस मुजरा दरबार में करके
सिखाते हैं हमें जज्बा अदब की बात करते हैं
यहां पर हैं बने मुजरिम खुदा से चाहते जन्नत
वहां सब हूर मिलने के जनम की बात करते हैं
मिटा डाले हैं सब जंगल इन्ही वहशी दरिंदो ने
बुलबुल को फंसाना है वतन की बात करते हैं
यहाँ तो सब शहंशाह हैं अलावा दास के देखो
उसी पर सारे गुस्सा हैं कफन की बात करते हैं II