संसार
संसार एक मकड़ी का जाल
इसमें मोह बंधन के तार
निर्मोही आकर्षक अपार
कभी लगे यह प्रेम राग
गृहस्थों का उत्तरदायित्व भार
संत कहे भव बंधन की गांठ
कभी देता खुशियां अपार
कोई झेलता दुख अंबार
खींचें बरवस अपने पास
मन फंसता इसमें बार बार
संसार इक मकड़ी का जाल
✍️#अर्पिता पांडेय