बेवजह तकरार बढ़ गई दुश्मनी बाकी है।
पिता की जमीन के टुकड़े होना बाकी है।।
खून के रिश्ते यहाँ खून के प्यासे निकले।
समझाए कौन उन्हें समझदारी बाकी है।।
कितना झूठ कितना सच शामिल बातों में।
फेंकने की आदत उनकी ठहराव बाकी है।।
जिसको धर्म समझा पूरा पाखण्ड निकाला।
जीने के लिए अभी 'उपदेश' साँस बाकी है।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद