खुशियाँ तुम लेकर चले गए
अब पीर सँजो कर रखना है
आँखों में रातें जाती हैं
अब बचा न कोई सपना है
सूख गई अन्तस् की सरिता
रीता नयनों का झरना है
सुधियाँ तो मँडराएँगी ही
पर उनका अब क्या करना है
बस दु:ख ही तो पहुँचाएँगी
बच कर उन सबसे रहना है
अन्त मिलन का बिछुड़न में है
यह सत्य कदापि न टलना है
निकले सब सम्बन्ध छलावा
सिद्ध हुआ एक मन अपना है
इस घायल मन को ही अब तो
दुलरा-फुसला कर रखना है