सत्ता, पावर के भूख में किसी को इंसान कहाँ नजर आता है,
कोई दलित, कोई हिंदू, कोई मुसलमान नजर आता है,
इलेक्शन के समय रोटी मिलता, लेकिन बाद में इंसान रोटी के लिए तरसता है,
कुछ तो करामाती मंत्र है पकीर बाबा के पास, आज के कथित लोकतंत्र में,
वोट देते हैं लोग फकीर को, और वह शहंशाह बन जाता है,
और हर बार वोटर वही रह जाता है, जहाँ वह लाइन में था खड़ा,
एक बार फिर से अंगूलियां रंगाने और एक दूसरे फकीर को शहंशाह बनाने को,
----धर्म नाथ चौबे मधुकर